*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
मुझे हर उस बात पर प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए जो मुझे चिंतित करती है।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
जिन्होंने मुझे चोट दी है मुझे उन्हें चोट नहीं देनी चाहिए क्योंकि वह मेरी उर्जा खा जाती है।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
शायद सबसे बड़ी समझदारी का लक्षण भिड़ में जाने के बजाय अलग हट जाने में है।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
अपने साथ हुए प्रत्येक बुरे और अच्छे बर्ताव पर प्रतिक्रिया करने में हमारी जो ऊर्जा खर्च होती है वह हमको खाली कर देती है ।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
मैं हर आदमी से वैसा व्यवहार नहीं पा सकूंगी जिसकी मैं अपेक्षा करती हूँ। और धीरे धीरे, में ये समझने लगी हूं कि दूसरे की अपेक्षा पूरी करना मूर्खता हैं ।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
किसी का दिल जीतने के लिए बहुत कठोर प्रयास करना, समय और ऊर्जा की बर्बादी है और यह हमको कुछ नहीं देता, केवल खालीपन से भर देता है।
☹
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
जवाब नहीं देने का अर्थ यह कदापि नहीं कि यह सब मुझे स्वीकार्य है, बल्कि यह कि मैं इससे ऊपर उठ जाना बेहतर समझती हूँ।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
कभी-कभी कुछ नहीं कहना सब कुछ बोल देता है।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
किसी परेशान करने वाली बात पर प्रतिक्रिया देकर हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण की शक्ति किसी दूसरे को दे बैठते हैं।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
मैं कोई प्रतिक्रिया दे दूँ तो भी कुछ बदलने वाला नहीं है। इससे लोग अचानक मुझे प्यार और सम्मान नहीं देने लगेंगे। यह उनकी सोच में कोई जादुई बदलाव नहीं ला पायेगा।
*मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...*
जिंदगी तब बेहतर हो जाती है जब हम अपना ध्यान , अपने आसपास की घटनाओं पर केंद्रित न करने के बजाय उसपर केंद्रित कर देते हैं जो हमारे अंतर्मन में घटित हो रहा है।
में *धीरे धीरे शिख रही हूं कि...*
फिर हम ने चिंतित करने वाली हर छोटी-छोटी बात पर प्रतिक्रिया 'नहीं' देना ओर ओशो , Gurdjieff, और krisnamurthy का बताया हुआ ,ध्यान करना चालू कर दिया है, ध्यान एक स्वस्थ और प्रसन्न जीवन का 'प्रथम अवयव' है
*मैं धीरे धीरे सीख रही हूं,* कि बिना ध्यान, ये सब उपर की बात संभालना मुश्किल है, अशक्य है, इस लिए मैं धीरे धीरे ज्यादा ध्यान में रहने लगी हू । । ....